जीवन में जब कभी किसी कठिनाई का सामना करना पड़े तो एक ही बात ध्यान में रखनी चाहिए कि हम इसमें अकेले नहीं है । जो समस्याएँ आज समक्ष खड़ी है वो बीते कल में भी थीं, और आने वाले कल में भी रहेंगी।अब प्रश्न यह उठता है की समाधान क्या है ?
बहुत सरल है, जो समाधान बीते कल में सम्भव था वही आज भी सम्भव है । हो सकता है उपाय, विचार या प्रयास का रूप कुछ बदल गया हो पर उसका प्रभाव नहीं बदलता। परिस्थिति बदल जाती है किंतु परिणाम नहीं बदलता।

 

बीते एक-दो साल में जो सबसे बड़ा सबक मानवता ने सीखा वो है अप्रत्याशित के लिए तैयार रहना। किंतु यह भी सीखा की जहाँ संसाधन होते हैं वहाँ मुक़ाबला कुछ आसान हो जाता है। तो फिर इस सम्पूर्ण सृष्टि में मनुष्य के अलावा अन्य जीव जन्तु अपने विपत्ति काल के लिए जो प्रबंधन करते है वह संभवतः हम मनुष्यों को उन से सीखने योग्य है।यह तो रही एक बात लेकिन संसाधनों में सबसे सशक्त संसाधन यदि कोई है तो वो बुद्धि बल है जो ईश्वर ने समान रूप से सबको दिया है। इस पर पुनः एक तर्क वितर्क प्रारम्भ हो सकता है की बुद्धिबल सबका समान कैसे हो सकता है ? किंतु वह सच में समान है। अंतर उसे काम में लेने की इच्छा शक्ति में है ना की बुद्धि की सामर्थ्य में अन्यथा ‘उष्ट्र ‘ शब्द का सही उच्चारण तक ना कर पाने वाले कालिदास विध्योत्तमा के एक प्रश्न वाक्य ‘अस्ति कश्चित वाग्विशेष?’ के एक एक अक्षर से एक एक महाकाव्य की रचना कैसे कर पाते। यह प्रमाण है इस बात का कि जहाँ चुनौती सामने आती है वहीं मनुष्य की इच्छा शक्ति और उसके प्रयासों की सही परख होती है।

 

कोरोना महामारी और उसके दौरान शिक्षा व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाना, लगभग सभी शिक्षण संस्थाओ के लिए अब तक की सबसे बड़ी चुनौती है। किंतु ग्रामीण शिक्षण संस्थाओं के लिए यह जितना चुनौतिपूर्ण रहा, उतना सम्भवतः शहरी शिक्षण संस्थाओं के लिए नहीं। और उसका सीधा कारण था डिजिटल संसाधनों का अभाव और साथ में डिजिटल प्लैट्फ़ॉर्म को इस्तेमाल करने का पूर्वानुभव ना होना। यह प्यास लगने पर कुआँ खोदने जैसी परिस्थिति थी।


ग्रामीण महिला विध्यापीठ के लिए यह यात्रा उतारचढ़ावो वाली रही किंतु इससे हमने जो सीख ली वह हमें भविष्य के प्रति और जागरूक बनाने में सहायक सिध्द होगी यह निश्चित है।प्रारम्भ में हमने जैसे ही ऑनलाइन एजुकेशन के संदर्भ में छात्राओं और अभिभावक गणों से बात की तो ज्ञात हुआ कि ग्रामीण परिवेश से आने वाली बालिकाओं के पास ना तो लैप्टॉप और स्मार्ट फ़ोन की व्यवस्था है और ना ही इंटर्नेट की सुविधा। अधिकांश घरों में एक ही फ़ोन है जो भी पिता या भाई के पास ही रहता है और छात्रा को रात्रि के समय उनके घर लौटने पर ही उपलब्ध हो सकता है।इस पर भी केवल कुछ अभिभावक ही बालिकाओं को स्मार्ट फ़ोन और इंटर्नेट उपलब्ध करवाने के लिए सहमत थे , और वे भी स्वयं के सामने ही उन्हें यह सुविधा देने में सहज थे। संस्था और शिक्षकगणों के समक्ष सबसे बड़ा धर्म संकट यह उपस्थित हुआ की हम लगभग नब्बे प्रतिशत विद्यार्थियों को शिक्षा से वंचित रखते हुए बाक़ी बालिकाओं को पढ़ा कर क्या उन के साथ न्याय कर पा रहे हैं जिनके पास सही समय पर संसाधन उपलब्ध नहीं हैं?
अनगिनत बार वैचारिक मंथन हुआ और सहमति इस पर रही की कुछ नया सोचा जाए। कुछ ऐसा प्रयोग किया जाए की हम हमारी छात्राओं तक शिक्षा की पहुँच बनाए रखने में सफल हो सकें। हमारी मेधावी, सीखने को आतुर छात्राओं में से अधिकांश आदिवासी समाज से आती हैं और ग्रामीण परिवेश में कठिन परिश्रमी परिवारों में पली बढ़ी हैं।उनमें से कई बालिकाएँ ऐसी भी हैं जिन्होंने बाल विवाह, बाल श्रम, अस्प्रश्यता जैसी समाज में व्याप्त कुरीतियाँ का सामना किया है और उनसे बहादुरी से लोहा ले कर अपनी पढ़ाई को जारी रखा है ।इसी पर मंथन करते करते एक दिन हमें आदिवासी कुमार ‘एकलव्य’ का ध्यान आया तो लगा की हमें उत्तर मिल गया।

गुरु की चरण रज से उनकी मूर्ति बना उसके समक्ष दृढ़ निश्चयी हो कर एकांत में केवल उन्हें देख कर सीखने वाले एकलव्य संभवतः लॉंग डिस्टन्स लर्निंग का सबसे पहला उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। यदि ऐसा तब सम्भव था तो आज क्यों नहीं? इस से प्रेरणा पा कर हमने एक YouTube चैनल की स्थापना करने की बात सोची और नाम रखा GmvEklavya’।
हमारे अनुभवी शिक्षकों ने पाठ्यक्रम के अनुरूप क्लास रेकर्ड करना शुरू कर उन्हें YouTube चैनल पर अपलोड करने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी जिसका लिंक वे अभिभावकों के WhatsApp ग्रूप्स पर साझा करते थे और उनसे मनुहार करते थे की वे उन बालिकाओं तक भी सूचना पहुँचाएँ जिन के माता पिता ग्रूप्स में जुड़े हुए नहीं हैं ताकि अन्य छात्राएँ भी अपनी सुविधा अनुसार कभी भी उस पाठ को समझ सकें । क्लास रेकर्ड करने की व्यवस्था प्रारम्भ में हमने स्कूल में की किंतु जैसे जैसे कोरोना के संक्रमण में बढ़ोतरी हुई हमारे समस्त अध्यापक अपने अपने घर से ही क्लास रेकर्ड करने लगे और इसी के साथ प्रारंभ हुई हमारी दूसरी समस्या।
हमारे सभी शिक्षकों के पास भी इंटर्नेट,कैमरा स्टैंड या ट्राईपोड उपलब्ध नहीं थे फिर भी उन्होंने बहुत से जतन कर और अपनी पारिवारिक परिस्थितियों में भी सामंजस्य बैठा कर पढ़ाना निरंतर जारी रखा। किसी ने पेन काग़ज़ पकड़ा तो किसी ने अपने घर के दरवाज़े को ब्लैकबोर्ड बना कर उस पर गणित के सवाल हल किए। कभी कभी पूरी क्लास की रिकॉर्डिंग स्पष्ट भी नहीं हो पाती थी। फिर लगा की बुद्धि नामक सर्वोच्च संसाधन का प्रयोग करते हुए , क्यूँ ना कोई और जुगत लगाई जाए?

इसी आवश्यकता से आविष्कार हुआ हमारे ‘एकलव्य स्टैंड ‘का।बची हुई लकड़ी के टुकड़ों से हमने एक ऐसा स्टैंड बनाया जिसे कही भी रखा जा सकता है । छोटे से स्थान में रख कर इसके नीचे पुस्तक या नोट्स रखे जा सकते हैं। ऊपर की पट्टी में बने सुराख़ पर मोबाइल कैमरे का लैंस नीचे की ओर देखता हुआ रख कर किताब भी स्पष्ट दिखाई देती है और साथ ही शिक्षक जो भी बोलते हैं वह सही ढंग से स्पष्ट रेकर्ड हो सकता है । इसकी सहायता से रेकर्ड करने में पन्नों को पलटने और कुछ लिख कर समझाने के लिए दोनों हाथ स्वतंत्र रहते हैं जो पढ़ाते समय बहुत आवश्यक है।साथ ही सीधी खड़ी हुई लकड़ी की पट्टियों में बने हुए खाँचे आवश्यकता अनुसार स्टैंड की ऊँचाई को कम या ज़्यादा करने में सहायक हैं।एक स्टैंड को बनाने की कुल लागत मात्र सौ से दो सौ रूपये के बीच ही आती है क्यूँकि यह किसी भी व्यर्थ पड़ी लकड़ी या बांस से बनाया जा सकता है।कहने की आवश्यकता नहीं की यह साधारण सा स्टैंड ना केवल हमारा सबसे अच्छा मित्र साबित हुआ परंतु इस के साथ साथ यह हमारे स्वाभिमान और स्वावलम्बन का प्रतीक भी बना ।
इस लेख को पढ़ते हुए यह विचार आना स्वाभाविक है की YouTube चैनल बनाना या ऑनलाइन पठन पाठन सामग्री डालना कोई बड़ी बात नहीं, या आज के दौर में कोई ऐसा पाठ नहीं जो हमें इंटर्नेट के विशाल समुद्र में खोजने पर ना मिले तो ग्रामीण महिला विद्ध्यापीठ के लिए एक और चैनल बनाना इतना विशेष क्यूँ है?
इसका उत्तर है और बहुत सरल भी है । कोई भी विद्यार्थी जब गुरु के सानिध्य में शिक्षा ग्रहण करता है तो उसका विश्वास अपने गुरुकुल और गुरु पर स्वतः ही आ जाता हो ,ऐसा नहीं है । विद्यार्थी को यह विश्वास होना आवश्यक है की उसकी सफलता पर उससे अधिक प्रसन्न उसके शिक्षक गण होंगे और यदि उसे सफलता प्राप्त करने में कठिनाई आती है तो उसके गुरूजन उसका सम्बल बन उसका हौसला बढ़ाने को उसके सम्मुख खड़े मिलेंगे। हमारी बालिकाएं पिछले कई वर्षों से जिन शिक्षकों से पढ़ती आई हैं ,उनकी डिजिटल उपस्थिति भी उन में यह आत्मविश्वास जगाने के लिए पर्याप्त है की वे और उनका संस्थान इस चुनौती का सामना करने में कहीं भी किसी से पीछे नहीं है।

हमें यह कहने में संकोच नहीं अपितु गर्व है की हमने और हमारी बालिकाओं ने मिल कर इस समय में कई नवाचार सीखे। अपने रास्ते स्वयं बनाए, अपने सीमित संसाधनों का ,अपने बुद्धि बल से भरपूर उपयोग करते हुए हम उन रास्तों पर एक दूसरे का हाथ थाम चले जिन रास्तों की बाधाओं का हमें भान नहीं था । किंतु जैसे जैसे बाधाएँ आईं हमने उन्हें पार करने के मार्ग स्वयं ढूँढे।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में डिजिटल एजुकेशन पर भविष्य में छोटी कक्षाओं से ही बहुत अधिक ध्यान देने का प्रावधान है और यह निश्चित है की आने वाला समय हर दृष्टि से शिक्षा का स्वर्णिम काल होगा। संसाधन बढ़ेंगे और जो भी माध्यम बहुत कठिन और पहुँच से बाहर लगते थे वे सभी के लिए सुगम और सरल हो जाएँगे किंतु हमारा ‘एकलव्य’ स्टैंड तब भी हमें गौरवानुभूति करवाता रहेगा।

2 thoughts on “कहानी हमारे अपने ‘एकलव्य’ की”

  1. यह इतना अच्छा प्रयास था की इस प्रयास के कारण हमारी सभी बच्चियां आगामी परीक्षाओं के लिए लाभान्वित हुई और इन सब प्रयासों को मूर्त रूप देने की प्रेरणा हम सभी को आप से ही मिली थी मुझे आज भी वह दिन याद है जब मैं पहली बार जो मैं प्लीकेशन पर जुड़ा और हम सबको मोटिवेशन देने के लिए आपने बहुत अच्छा सराहनीय कदम उठाया उस वक्त में कहीं बाहर विजिट पर था घर पर नहीं था और मैंने जूम एप्लीकेशन पर वह लाभ उठाया और हम सब ने दूसरे ही दिन से क्लास के लिए तैयारी शुरू कर दी थी और वह भी हमारी प्रथम ऑनलाइन क्लास थी धन्यवाद दीदी इस प्रयास की शुरुआत आपकी प्रेरणा से ही हुई थी मैं बार-बार आपको धन्यवाद अर्पित करता हूं।

  2. Very nice work, thanks for education for Girls in village, vidhyapith is doing Great work
    Thanks all teacher and management Team.

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